कमो बैस एक सदी पहले ... कोटला सुल्तान सिंह तालुका मजिथा " 24 दिसंबर 1924 दिन बुधवार " की सर्द रात... सुबह सादिक से कुछ पहले सफेद बालो वाली दाई "कम्मो" की आवाज़ आती है " अल्लाह के करम से इस बार भी लड़का ही हुआ है अल्लाह रक्खी " बच्चे को माँ की गोद मैं देती है कुछ देर बाद दाई हाजी अली मुहम्मद साहब को बच्चे का चेहरा दिखाती है जो बहार खड़े इस खबर का इंतज़ार कर रहे थे हाजी अली मुहम्मद साहब दाई कम्मो को दो सैर गेहूं,.... गुड़, नये कपड़े और कुछ सिक्के देते हैं बच्चे का नाम मुहम्मद रफ़ी ( The Exalted one) रखा जाता है दोस्तों यही मासूम बच्चे आगे चल कर "दी ग्रेट मुहम्मद रफ़ी साहब" बने जो की आज लाखों नहीं करोड़ों लोगो के दिलों पर राज़ करते हैं दोस्तों वैसे ये बात ज्यादा मायने नहीं रखती के कौन कब पैदा हुआ और कब दुनिया से रुखसत हो गया बल्कि ये बात मायने रखती हैं की जिंदगी किन उसूलो पर गुजारी -और रुखसत होने के बाद भी लोग उन की ज़िन्दगी से किस कदर फ़ैज़याब हो रहे हैं रफ़ी साहब समाजी हम अहंगी (सामाजिक एकता ) की सब से बड़ी अलामत हैं रफ़ी साहब की अहमियत ये ही नहीं ...
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